KGF 2 Review: बॉक्स ऑफिस में पहले दिन रॉकी भाई ने ला दिया तूफान! लेकिन संजय दत्त फिल्म की असली जान है

साउथ के स्टार यश का जादू इस समय हर किसी के सिर चढ़कर बोल रहा है। यश की फिल्म केजीएफ चैप्टर 2 रिलीज हो चुकी हैं। इस फिल्म का हर कोई बेसब्री से इंतजार कर रहा था। चार साल बीत गए हैं और अब ये विलेन ‘भगवान’ बन चुका है। केजीएफ का दूसरा चैप्टर आया है, जिसके लिए क्रेज़ पहले से भी ज्यादा और बड़ा है। अब फिल्म रिलीज हो गई है और बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रही है। केजीएफ चैप्टर ने बॉक्स ऑफिस पर सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले हैं। ये फिल्म तूफान बनकर आई है और हर किसी पर भारी पड़ गई है। यश की केजीएफ चैप्टर 2 ने पूरे देश में 134.36 करोड़ का बिजनेस कर लिया है।

फ़िल्म की कहानी बिल्कुल वैसी है, जैसी किसी भी फ़िल्म की होगी। गरीब लड़का रॉबिनहुड बना, उसने सबपर राज किया। बुरे काम करते हुए वो आम लोगों का भला करता रहा और मसीहा बन गया, अपने दुश्मनों को खत्म कर दिया। साथ में मां और प्यार का एंगल भी है। बस.. लेकिन खेल यहीं पलटता है क्योंकि इस कहानी के बावजूद इस फिल्म का भौकाल इसे KGF बनाता है।

पहले चैप्टर में रॉकी ने खदान पर कब्जा किया, लोगों को विलेन के राज से मुक्त करवा दिया और मसीहा बन गया। चैप्टर-2 इसी मसीहा की कहानी है जहां खदान के आसपास रहने वाले 15 लाख लोग हैं, जिनका एक ही भगवान है रॉकी। जिसका मकसद सिर्फ सोना निकलवाना है। जिनके साथ छिपकर उसने खदान पर कब्जा किया, अब उनके लिए वह भगवान हो चुका है।

फिल्म में एक डायलॉग है, ‘शुरू करवाने के लिए इसकी मां थी, लेकिन अब बंद कौन करवाएगा।’ यश का स्टारडम ऐसा ही है, केजीएफ ने उन्हें जिस मुकाम पर पहुंचा दिया है। वो बाहुबली के प्रभास वाला है। शायद उससे भी बड़ा, क्योंकि प्रभास फिल्म में हीरो थे। यश यानी रॉकी विलेन वाला हीरो है और भारत की हिन्दी ऑडियंस जो मसाला फिल्मों की फैन है, उसका पसंदीदा कैरेक्टर यही होता है। केजीएफ के बाद यश जो भी कर रहे होंगे, उसपर सिर्फ साउथ नहीं बल्कि नेशनल ऑडियंस की नज़र होगी। बस उनके फैन्स को उम्मीद यही होगी कि प्रभास की तरह उनका हाल भी साहो और राधे-श्याम जैसा ना हो।

पहले और दूसरे चैप्टर में कई किरदार एक ही हैं, लेकिन इस बार कुछ नए लोगों की भी एंट्री हुई है। प्रकाश राज इस बार कुर्सी पर बैठकर कहानी बता रहे हैं, रवीना टंडन देश की प्रधानमंत्री बनी हैं। रवीना ने एक ग्रे-शेड सीरियस पॉलिटिशयन का किरदार निभाया है, जो सख्त है। वो सख्ती रवीना के चेहरों पर नज़र भी आती है। उनका कैरेक्टर आपको किसी से मिलता-जुलता भी लग सकता है, जो आपको फिल्म देखने पर खुद ही पता लग जाएगा।

लेकिन फिल्म की अगर कोई जान है, तो इस बार भी विलेन ही है। रॉकी भाई पहली फिल्म में विलेन कहलाए गए, लेकिन गरुड़ा का किरदार हर किसी को याद रहा। अब अधीरा आया है, यानी संजय दत्त। संजय दत्त की एंट्री से लेकर क्लाइमेक्स की फाइट तक विलेन आपके दिल-ओ-दिमाग पर छाया रहता है। संजय दत्त की एंट्री आग की लपटों में होती है और सबसे बेहतरीन पंच उनके पास हैं तो आते ही उनकी बौछार भी होती है। जैसे ‘तुम्हारे भगवान का खून तो निकलता है ना..’

कानूनी पचड़ों से पूरी तरह मुक्त होने के बाद संजय दत्त फिल्मी दुनिया में अपना जो रुतबा फिर से पाना चाहते थे। शायद उनकी तलाश पूरी हो गई है। अधीरा के किरदार में संजय दत्त बहुत ज्यादा सही लगे हैं, अग्निपथ (नई वाली) का कांचाचीना भी यहां मात खाता है। डायलॉग डिलिवरी, एग्रेशन और संजय दत्त की स्पेशल वॉक स्क्रीन पर अपना पूरा जलवा बिखेरती है।

फिल्म का क्लाइमेक्स बेहतरीन है, जहां बिना शर्ट-फटे, बॉडी दिखाए या किसी को हवा में उड़ाए. हीरो और विलेन में बेहतरीन फाइट सीक्वेंस चल रहा है। और हां.. फिल्म खत्म हो तो उठकर मत जाना। क्रेडिट्स के बाद भी रुकना।

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