टीवी एक्ट्रेस रतन राजपूत इन दिनों सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं। रतन अपने यूट्यूब चैनल पर अपने जीवन से जुड़े किस्से शेयर करती हैं। रतन राजपूत ने अपनी मेहनत के दम पर इंडस्ट्री में एक अलग पहचान बनाई है। अब रतन ने अपने यूट्यूब चैनल पर अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए एक इमोशनल वीडियो शेयर किया है। रतन राजपूत ने अपने ताजा व्लॉग में अपने संघर्ष के दिनों को याद किया है। रतन ने बताया कि कैसे उन्होंने बिना पैसे के बिहार से मुंबई का सफर तय किया और कई बार भूखे पेट सोना पड़ा।
रतन राजपूत अपने घर में सबसे छोटी थी और इसीलिए वह बहुत जिद्दी और शरारती भी थीं। अपने बचपन के बारे में वह बताती हैं, ‘मैं सपने देखती थी। मुझे लगता था कि कोई मुझे समझता नहीं है। मैं सोचती थी कि चिड़िया उड़ती क्यों है, तैरती क्यों नहीं है। मुझे लगता था कि आसमान एक नदी है और मुझे उसमें तैरना है। बचपन में जो कहानियां सुनती थी, उन्हें सुनने के बाद मेरे मन में कई सवाल आते थे। मैं भीड़ से थोड़ी अलग थी। पढ़ाई के बजाय मेरा डांस और ड्रामा में ज्यादा मन लगता था।’
रतन पढ़ाई-लिखाई को लेकर बिल्कुल भी सीरियस नहीं थी। 5 भाई-बहनों के बीच वह बहुत लाढ़-प्यार से पली थीं। वह बताती हैं, ‘मैं बहुत लकी रही। मेरे घर में थोड़ी-बहुत खटपट होती रहती थी। पापा चाहते थे कि मैं बीएड कर लूं। मुझे तो यह सुनकर बुखार हो गया था। मैंने पापा को साफ कह दिया था कि मुझे पढ़ना अच्छा नहीं लगता। मैं पापा से कहती थी कि मुझे शादी करनी है और पापा कहते थे कि ग्रेजुएशन तो करना पड़ेगा नहीं तो मैं लोगों से क्या कहूंगा कि मेरी बेटी को कुछ नहीं आता है। मैं बचपन से शादी करना चाहती थी। मुझे घर सजाना और बचे-खुचे खाने से एक्सपेरिमेंट करने में मन लगता था।’
दिल्ली से रतन अपनी बहन के साथ रहा करती थीं। रतन की बहन उन दिनों फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही थी। वह बताती हैं, ‘मेरे पापा कहते थे कि दिल्ली जाकर अपने करियर को आगे बढ़ाओ। मैंने पापा को इसके लिए हां बोल दिया। लेकिन मैंने उन्हें झूठ बोला था, पटना से ही मेरे दिल में पढ़ने की कोई इच्छा नहीं थी। उधर दिल्ली के मंडी हाउस जाकर मैं परेशान हो गई, क्योंकि मैंने पहले से कोई ट्रेनिंग नहीं ली हुई थी। एनएसडी में दाखिला लेने के लिए मेरे पास कोई एक्सपीरियंस नहीं था।
मां और पापा के साथ मेरी बॉन्डिंग अच्छी थी, लेकिन मैं उन्हें दुखी नहीं करना चाहती थी, इसीलिए उनका दिल रखने को मैं उनसे झूठ बोलती थी कि मैं अपने लिए कोर्स पता कर रही हूं। मेरा स्ट्रगल लंबे वक्त तक चला। मैं यही सोचती थी कि कुछ हासिल हो जाए तो मम्मी-पापा से सब बता दूंगी। मैं उस दौरान सिर्फ ऑडिशन देती रही। इसी दौरान मैंने श्रीराम भारतीय कला केंद्र से कथक सीखने की ट्रेनिंग ली।
पास में ही एनएसडी था। वहां मैं एक प्ले देखने गई, ‘पर हमें खेलना है’। आज के समय के जाने-माने कास्टिंग डायरेक्ट मुकेश छाबड़ा उन दिनों एक्टर हुआ करते थे और वे इस नाटक में परफॉर्म कर रहे थे। मुझे यह प्ले बहुत अच्छा लगा। और इसके बाद मैं रोजाना एनएसडी नाटक देखने के लिए आने लगी। उस समय में पैसे ज्यादा नहीं होते थे, तो फ्री में नाटक देखने का चस्का लग गया।’
रतन का मानना है कि संघर्ष हमेशा रहता है। वह बताती हैं, ‘मैं आज एक मुकाम पर पहुंच गई हूं तो जिम्मेदारी हो गई है। पहले मेरे पास खोने को कुछ नहीं था। मैंने समझा कि चैलेंज हमारी जिंदगी का हिस्सा हैं। इस सोच से तकलीफ महसूस नहीं होती। महिलाओं को मैं यही कहूंगी कि वे जो पाना चाहती हैं उसके लिए पूरी ताकत लगा दें। किसी भी परिस्थिति या हालात से अपनी स्थितियों की तुलना ना करें। सपने जरूर देखें और उसे पाने के लिए हिम्मत भी दिखाएं, क्योंकि कोई और आपके लिए कुछ नहीं करेगा।